क्या सच में स्वर्ग और नर्क है? या सिर्फ पहले की बातें हैं?
कहानी पुरानी है, कहते है राजा जनक मनुष्य जनम के सब से *तेज़ज्ञानी और स्वकर्मी* होकर गए। जब उनकी मृत्यु हुई तो दूत भगवान से बोले, “ जनक राजा के पूरे जीवन काल में सिर्फ़ एक ही ऐसा कर्म था जो सही नही था।अब इन्हें इनके कर्मों का क्या दंड दे और कैसे?”
भगवान बोले, “ इनका स्वर्ग जाना तो निश्चित है लेकिन इन्हें नर्क के रास्ते से स्वर्ग की और ले जाओ। और यही उनके उस एक बुरे कर्म का फल होगा।”
और दूत उन्हें नर्क के रास्ते लेकर आ रहे थे।जनक राजा ने देखा हज़ारों लोग पीड़ा में थे। किसी को गरम कढ़ाई में डालकर वेदना दी जा रही थी तो किसी को कोड़े बरसाकर। राजा बहुत दुखी हुए और दूत से बोले, “ क्या इन्हें आजीवन ऐसे ही नर्क में वेदनाएँ सहनी होगी?”
दूत ने कहा, “ हाँ, किंतु एक उपाय है अगर कोई पुण्य कर्मी इंसान इनके लिए तप करे तो शायद कुछ लोगों की मुक्ति हो सकती है।”
जनक राजा ने वहीं स्थान ग्रहण किया और तप करने बैठ गए। धीरे-धीरे पूरी नर्क नगरी स्वर्ग में बदल गयी।
अब कहानी का सार समझते है…यहाँ जनक राजा ने स्वयं के बारे में ना सोचकर उन वेदनाओं में पड़े लोगों के बारे में सोचा तभी उनका एक बुरा कर्म सतकर्म में बदल गया। और देखते ही देखते नर्क भी स्वर्ग बन गयी।
इस धरती पर ही स्वर्ग है। अगर हम भी इसी तरह अच्छे विचार , अच्छा व्यवहार रखेंगे, परोपकार की भावना रखेंगे , तो यह धरती भी स्वर्ग से कम ना होगी। इसलिए स्वर्ग या नर्क के बारे में ना सोचकर हमारे आसपास स्वर्ग का निर्माण करे।
ज्ञानी लोग कहते हैं जिंदगी में हम जो नर्क और स्वर्ग समझते हैं ना वह प्रकटतंः कुछ नहीं होता । हमारे कर्म और हमारे जीवन निर्वाह पद्धति ही नरक और स्वर्ग है। कुछ नरक सी जिंदगी में भी रहते हुए स्वर्ग में रहना समझते हैं और कुछ स्वर्ग सी जिंदगी में रहते हुए भी नरक में रहना समझते है । बस… अब यह अपनी अपनी समझ है ।
इसलिए सकारात्मक रहो, अच्छे कर्म करो, ख़ुशी और ग़म दोनो जीवन के विभिन्न अंग है उन्हें हँसते खेलते जीयो।
ॐ नमः शिवाय